पहली कावड़ यात्रा | Mythology Story in Hindi
तो शुरू करते यह है। Mythology Story in Hindi
कुछ विद्वानों का मानना है की सबसे पहले भगवान श्री परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित पुरा महादेव का कावड़ में गंगाजल लाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। परशुराम इस प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गलतेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे।
आज भी इस परंपरा का पालन करते हुए सावन के महीने में लाखों लोग महादेव का जलाभिषेक करते हैं गढ़मुक्तेश्वर को वर्तमान के समय में ब्रजघाट के नाम से जाना जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावड़िया थे।उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबा धाम में
शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। वही पुराणों के अनुसार कावड़ यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वह नीलकंठ कहलाए परंतु विष के नकारात्मक प्रभाव ने भगवान शिव को घेर लिया शिव को इन प्रभावों को
मुक्त कराने के लिए उन के परम भक्त रावण ने ध्यान किया और उन्होंने भी कावड़ में जलकर जल भरकर शिवजी का जलाभिषेक किया इससे भगवान शिव विष के नकारात्मक प्रभाव से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा परंपरा प्रारंभ हुआ पहला कावड़ जो भी हो लेकिन यह हमारे सनातन धर्म में आस्था
से भगवान शिव को पाने की एक प्रथा है इस धार्मिक यात्रा की विशेषता यह भी है कि सभी कावड़ यात्री केसरिया रंग के वस्त्र धारण करते हैं केसरिया रंग जीवन में ऊर्जा साहस आस्था और गतिशीलता बढ़ाता है। सभी कावड़ यात्री बोल बम बम बम को बोल कर एक दूसरे का मनोबल बढ़ाते हैं। यह यात्रा में रास्ते भर एक दूसरे से बाते करते चलते हैं रास्ते में छोटे बड़े गांव और शहरों से गुजरते हैं
तो स्थानीय लोग भी इन्हें कावड़ यात्रियों का स्वागत करते हैं कावड़ यात्रा में कावड़ के भी विभिन्न रूप होते हैं एक बांस पर दोनों और झूले के आकार और उसे सजा कर उसे साधते हुए कांवड़ बनाई जाती है। गंगाजल वाले मटके दोनों और बराबर से लटके होते हैं।
कावड़ियों द्वारा विश्राम या भोजन के समय इसका कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता पीढ़ी या किसी अन्य स्थान पर इसे टांग दिया जाता है। कावड़ यात्रा लंबी तथा कठिन होती है लेकिन लक्ष्य केवल एक ही होता है कि महादेव को जल चढ़ाना है। व्यक्ति को इस लंबी यात्रा के दौरान इसमें शरीर को तोड़ देने
वाली तपस्या है यह भगवान भोलेनाथ को पाने की साधना है और इसी तरह डाक कावड़ होती हैं। जिसमें कावड़िया बिना रुके घाट से जल भर के जहां जल चढ़ाना है वहां तक भागते हुए जाते हैं और उस जल को बिना रुके बिना कहीं पर बैठे उसको लगातार दौड़ना होता है। उस वक्त जब कोई कांवरिया थक
जाता है तो भागते भागते ही दूसरा कावड़िया उस गंगाजल को थाम लेता है और फिर वह भागता है और चारों तरफ उसके साथी कावड़िया चलते हैं। बाइक पर और ट्रक में ताकि वह थक जाए तो तुरंत गंगाजल उससे लेकर वह खुद भागे इसमें काफी कठिनाई होती है पैरों में छाले दर्द और लगातार भागने से सांस
भी फूलती है।पर शिव भक्ति में सब कांवड़िया खुशी से सब सेह लेते है। हर हर महादेव कावड़ियों द्वारा विश्राम या भोजन के समय इसका कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता पीढ़ी या किसी अन्य स्थान पर इसे टांग दिया जाता है। कावड़ यात्रा लंबी तथा कठिन होती है लेकिन लक्ष्य केवल एक ही होता है
कि महादेव को जल चढ़ाना है। व्यक्ति को इस लंबी यात्रा के दौरान इसमें शरीर को तोड़ देने वाली तपस्या है यह भगवान भोलेनाथ को पाने की साधना है और इसी तरह डाक कावड़ होती हैं। जिसमें कावड़िया बिना रुके घाट से जल भर के जहां जल चढ़ाना है वहां तक भागते हुए जाते हैं
और उस जल को बिना रुके बिना कहीं पर बैठे उसको लगातार दौड़ना होता है। उस वक्त जब कोई कांवरिया थक जाता है तो भागते भागते ही दूसरा कावड़िया उस गंगाजल को थाम लेता है और फिर वह भागता है और चारों तरफ उसके साथी कावड़िया चलते हैं। बाइक पर और ट्रक में ताकि वह थक जाए
तो तुरंत गंगाजल उससे लेकर वह खुद भागे इसमें काफी कठिनाई होती है पैरों में छाले दर्द और लगातार भागने से सांस भी फूलती है।पर शिव भक्ति में सब कांवड़िया खुशी से सब सेह लेते है।
🔱 🕉️हर हर महादेव📿🙏
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